
जगदलपुर (पपलू )। जनकपुरी में नौ दिनों तक अपने मौसी के घर रहने के बाद भगवान जगन्नाथ 5 जुलाई को रथारूढ़ होकर श्रीधाम पहुंचे। जगन्नाथ मंदिर में जगत स्वामी का स्वागत पूजन के बाद मंदिर में प्रवेश से पहले रुष्ट माता लक्ष्मी से संवाद और मान-मनौव्वल करनी पड़ी। इस बीच श्रद्धालु भक्तो ने गजामूंंग और पनस खोवा का विशेष भोग लगाया। रथ संचालन के दौरान लोगो ने पारम्परिक रूप से तुपकी चलाकर सलामी दी गई। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचे थे। श्री जगन्नाथ स्वामी श्री धाम पहुंचने के साथ ही गोंचा पर्व सम्पन्न हो गया।
बस्तर में पिछले 618 वर्षो से चली आ रही परम्परा के अनुसार 5 जुलाई को बाहुड़ा गोंचा के अवसर पर सीरासार सहित जगन्नाथ मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना हुई। भगवान जगन्नाथ स्वामी को आखरी दिन खिचड़ी का भोग लगाया गया। शनिवार की सुबह गुंडिचा मंडप में विराजित भगवान जगन्नाथ स्वामी, भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा की प्रतिमाओं का पूजा-अनुष्ठान के बाद दोपहर को विशेष श्रृंगार के साथ रथारुढ़ किया गया। गुंडिचा मंडप से दंतेश्वरी मंदिर, गुरूनानक चौक, जयस्तंभ चौक होते श्री जगन्नाथ मंदिर रथ को पहुंचाया गया। रथ संचालन के दौरान जय जगन्नाथ की जय घोष से वातावरण गुंज रहा था। देर शाम भगवान की प्रतिमाओ को रथ से उतारा गया। इस दौरान बड़ी संख्या मे श्रद्धालु मौजूद रहें।
निभाई गई कपाट फेड़ा रस्म : मंदिर पहुंचने पर नाराज माता लक्ष्मी ने भगवान और उनके भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा को प्रवेश करने नहीं दिया। इसके लिए समाज सदस्यों ने देर शाम कपाड़ फेड़ा रस्म पूरी की। इसमें भगवान और माता की ओर से प्रतिनिधियों के बीच वाद-विवाद और मान-मनौव्वल का दौर चला। कपाट फेड़ा रस्म के बाद भगवान की प्रतिमाओं को मंदिर में प्रतिस्थापित किया गया।
दिनभर चलीं तुपकियां : बाहुडा गोंचा पर शहर में सुबह से ही ग्रामीण अंचलों से तुपकी बेचने वाले पहुंचने लगे थे। शहर के चौक-चौराहो पर महिला एवं पुरुष तुपकी बेचते रहे। श्रीगोंचा से ज्यादा बाह़ुडा गोंचा पर तुपकी की डिमांड बनी हुई थी। बाहुड़ा गोंचा पर शहर में दिन भर तुपकियों की आवाज से गूंजती रही।