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आदिवासी समाज : केंद्र सरकार ना समझे अपनी प्रयोगशाला

दन्तेवाड़ा (पपलू)। आदिवासी कार्यकर्ता एवं भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष संजय पंत ने प्रेस नोट जारी कर छत्तीसगढ़ में निवासरत आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति को देखते हुए इसे केंद्र सरकार के प्रयोगशाला की संज्ञा देकर आदिवासी समाज पर इसके होने वाले दुष्प्रभाव पर समीक्षात्मक टिप्पणी की है।

किसान नेता आगे कहते हैं कि भारत सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ के लिए घोषित विशेष पिछड़ी जनजातियों में से एक अबूझमाडिया के निवास क्षेत्र अबूझमाड़ में भारतीय सेना के ट्रेनिंग कैंप की स्थापना स्थानीय आदिवासी समाज के प्रति केंद्र सरकार की संवेदनहीनता को दर्शाता है। इस ट्रेनिंग कैंप की स्थापना के लिए आदिवासी किसान भाईयों की उपजाऊ जमीनों एवं हरे-भरे जंगलों सहित कुल पचपन हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि को समतल कर दिया जाएगा। भारतीय सेना के ट्रेनिंग कैंप की आड़ में आदिवासी समाज को उनके जल, जंगल और जमीन के अधिकारों से वंचित करना ही प्रमुख उद्देश्य है। पांचवी अनुसूची एवं पेसा कानून लगे हुए अबूझमाड़ क्षेत्र में स्थानीय ग्रामीण आदिवासी किसान भाइयों की मर्जी एवं अनुमति के बिना ट्रेनिंग कैंप की स्थापना भारतीय संविधान में बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा दिए गए संवैधानिक अधिकारों का सीधा-सीधा एवं खुला उल्लंघन है। दुख तो तब होता है जब छत्तीसगढ़ में कठपुतली सरकार के मुख्यमंत्री ट्रेनिंग कैंप लगाए जाने के प्रस्ताव की समीक्षा कर रहे हैं और वह खुद ही आदिवासी समाज से हैं। अबूझमाड़ में सेना के ट्रेनिंग कैंप की स्थापना का प्रस्ताव पहले साल 2009 में लाया गया था जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। आदिवासी किसान भाइयों के लिए यह विचार करने का विषय है कि सभी राजनीतिक दलों की बागडोर अंत में पूंजीवादी एवं शोषणकारी ताकतों के हाथों में ही होती है। बस्तर का आदिवासी समाज एवं भारतीय किसान यूनियन भारतीय सेना का सम्मान करती है किंतु केंद्र सरकार को एक कीमती सलाह यह देती है कि गुजरात के कच्छ क्षेत्र का एक बड़ा भू-भाग दलदली एवं बंजर है, अतः भारतीय सेना के ट्रेनिंग कैंप की स्थापना गुजरात राज्य में एक लाख हेक्टेयर से भी अधिक बड़े जमीन पर करना चाहिए जिससे भारतीय सेना और मजबूत हो सके। यदि केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा अबूझमाड़ क्षेत्र में सेना के ट्रेनिंग कैंप लगाने के प्रस्ताव को लिखित में निरस्त नहीं किया जाता है तो बहुजन समाज के हितों के लिए भारतीय किसान यूनियन के नेतृत्व में संपूर्ण बस्तर क्षेत्र में व्यापक जन आंदोलन छेड़ा जाएगा।
आदिवासी कार्यकर्ता संजय पंत ने नारायणपुर जिले के ओरछा तहसील के रेकावाया पंचायत में स्थित जनता के स्वामित्व वाले स्कूल (जनताना स्कूल) को संबंधित ग्राम पंचायत को सौंपे जाने एवं इसका नाम भूमकाल स्कूल रखे जाने की घटना का स्वागत किया है। यहां जनताना शब्द से तात्पर्य आम जनता के स्वामित्व से है किसी विचारधारा या संगठन से नहीं। जनताना गोंडी भाषा का एक महत्वपूर्ण समाजवादी शब्द है जो पूंजीवादी एवं शोषणकारी ताकतों पर चोट करता है। वह आगे कहते हैं की सरकार द्वारा रेकावाया स्कूल का अधिग्रहण कर उसे मान्यता दिया जाना चाहिए। रेकावाया ग्राम में ही सरकारी स्कूल, छात्रावास, आंगनबाड़ी, उप स्वास्थ्य केंद्र, बिजली, शुद्ध पेयजल की व्यवस्था सरकार द्वारा की जानी चाहिए। यह बात तो तय है कि आदिवासी किसान भाइयों का कल्याण जल, जंगल और जमीन की इस लड़ाई को अपने हाथों में लेने से ही संभव है और शिक्षा इस लड़ाई का सबसे महत्वपूर्ण हथियार है। यदि समाज संगठित एवं स्वार्थ से ऊपर उठकर सोचेगा तो इस लड़ाई में बहुजन समाज की जीत निश्चित है। बस्तर के युवाओं के लिए अब खुले आसमान में उड़ने का समय आ चुका है और शिक्षा ही इस ऊंचाई को परवान देगी। आरक्षित सीटों से चुने गए जनप्रतिनिधियों का निजी स्वार्थ राज्य के बहुजन समाज के दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण है। आदिवासी किसान भाइयों के कल्याण के लिए बने हजारों करोड रुपए के डीएमएफ फंड में भ्रष्टाचार की सख़्त जांच कर भ्रष्टाचारियों को जेल भेजना चाहिए। आदिवासी किसान भाइयों को शिक्षा के माध्यम से अपने संवैधानिक हक एवं अधिकारों का ज्ञान लेना ही पड़ेगा अन्यथा समाज केंद्र सरकार की प्रयोगशाला बन कर ही रह जाएगी।

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